Motion of thanks on President’s Address Speech
श्री जयंत चौधरी (मथुरा) : मैं अपने दल की ओर से महामहिम राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं। राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में काफी महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा की। मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून का चरित्र मूलतः औपनिवेशिक है। 1894 में इंग्लैण्ड के व्यापारिक हितों को साधने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भूमि अधिग्रहण कानून की शुरूआत की थी। आजादी के बाद उस कानून में समय-समय पर संशोधन होते रहे। किन्तु आज केन्द्र और राज्य सरकारें इस कानून का जिस तरह इस्तेमाल कर रही हैं उसके नतीजे ईस्ट इंडिया कम्पनी की अपेक्षा जनता के लिए अधिक भयावह रूप में सामने आ रहे हैं। भूमि अधिग्रहण सार्वजनिक हितों के लिए आमतौर पर सड़क, अस्पताल, स्कूल अथवा सरकारी कार्यालय की इमारतें बनाने के लिए किया जाय। जहाँ तक किसी औद्योगिक मिल या कारखाने के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रश्न है तो वहां पर भी उद्योगपतियों को भूमि किसानों से सीधे लेनी चाहिए। इसमें सरकार का दखल कहां तक उचित है?
Speech on Situation arising out of the deaths of farmers in police firing in Mathura and Aligarh, U.P. agitating against land acquisition for Yamuna Expressway.
श्री जयंत चौधरी : अध्यक्ष महोदया, कल सदन में जो हुआ, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सदन का हरेक सदस्य और हम सबको यहां अगर किसी ने चुनकर भेजा है तो गांवों में रह रहे किसान, नौजवान गरीब मजदूरों ने भेजा है। हमारी उनके प्रति एक जिम्मेदारी बनती है। मैं सदन को अवगत कराना चाहता हूं कि क्या कारण थे, मैं नहीं जानता। प्रदेश सरकार नहीं चाहती थी कि मैं वहां जाऊं। मैं एक जनप्रतिनिधि हूं। प्रदेश सरकार नहीं चाहती थी कि मैं वहां पहुंचू। शायद वह नहीं चाहती थी कि हमारे दल के या विभिन्न दलों के लोग जो कल 15अगस्त को सुबह वहां पहुंचे हैं, प्रदेश सरकार नहीं चाहती थी कि हम वहां जाएं और लोगों की बात सुन पाएं।...(व्यवधान) मेरे घर पर डी.एम. की ओर से एक फैक्स आय़ा कि आपका अलीगढ़ में प्रवेश वर्जित है क्योंकि आप किसानों को प्रोत्साहित करेंगे। कैसे टैम्पो में छुप-छुपकर 50 कि.मी. गाड़ी बदल-बदलकर मैं वहां पहुंचा हूं और वहां जो मैंने स्थिति देखी है, जो तनावपूर्ण वहां माहौल है। सभी सदस्यों ने अपनी-अपनी बातें रखी हैं। मैं सहमत हूं, जो देवेगौडा जी कह रहे थे, उनकी बात से भी मैं सहमत हूं। हम सबकी करोड़ों बहनें रहती हैं, किसान की बेटियां रहती हैं।
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